शनिवार, 12 नवंबर 2011

अनिष्ट ग्रहों के निवारण हेतु कुछ उपाय-

सूर्य
सूर्य के लिए-
०१. ग्यारह या इक्कीस रविवार तक गणेश जी पर लाल फूलों चढ़ाएं |
०२. चांदी के बर्तन में जल पीयें, और चांदी के वर्क का सेवन करें |
०३. रविवार को नमक का सेवन करें |
०४. सूर्य की होरा{समय} में निर्जल {बिना पानी पीये} रहें |
०५. विष्णु भगवान का पूजन करें |
०६. "ॐ घ्रिणी सूर्याय नमः" इस मन्त्र का १०८ या ५१ या फिर २१ बार
       सुबह शाम जाप करें |
०७. सूर्य को ताम्बे के लोटे से "जल, चावल, लाल फूल, लाल सिंदूर" मिला
       कर अर्घ्य दें |

चन्द्र
 चन्द्र के लिए-
०१. दक्षिणावर्ती शंख का नित्य पूजन करें |
०२. ग्यारह सोमवार को दोपहर में केवल दही-भात ही खाएं |
०३. सूर्यास्त के बाद दूध न पियें | न ही पिलायें |
०४. तीन सफ़ेद फूल हर सोमवार और पूर्णिमा को नदी या बहती
       दरिया में विसर्जित करें |
०५. मोतियों की माला या चन्द्रकान्तमणि गले में धारण करें |
०६. पूर्णिमा की रात को चन्द्र दर्शन करें व चन्द्रमा को चावल एवं 
       दूध मिलाकर चांदी के बर्तन से अर्घ्य दें |
०७. सोमवती अमावस्या को ५ सुहागन स्त्रियों को खीर का भोजन कराएँ व दक्षिणा दें |

मंगल
 मंगल के लिए-
०१. मंगलवार को रेवड़ियाँ पानी में प्रवाहित करें | 
०२. आटे के पेड़े में गुड व चीनी मिलाकर गाय को खिलाएं |
०३. ताम्बे के बर्तन से जल पियें |
०४. लाल पुष्पों को जल में प्रवाहित करें, मंगलवार को हनुमान जी के 
       मंदिर जा के हनुमान जी के चरणों से सिंदूर अपने मस्तक से
       लगायें |
०५. नित्य सुबह शाम हनुमान चालीसा व बजरंग बाण का पाठ करें |
०६. दूध का उबाल चूल्हे पर न गिरने दें |

बुध के लिए-

बुध
 ०१. एक हरी इलाईची प्रतेक बुधवार को जल में प्रवाहित करें |
०२. बुधवार को इलाईची व तुलसी के पत्ते सेवन करें |
०३. हरे सीता फल के अन्दर ताम्बे के पैसे डालकर नदी में प्रवाहित
      करें |
०५. संकटनाशन गणपति स्तोत्र का पाठ नित्य करें |
०६. बुधवार के दिन ५ बालक व बालिकाओं को भोजन कराएँ |
०७. बुधवार को गाय को हरी घास खिलाएं |
०८. दुर्गासप्तशती का पाठ करवाएं | यदि संभव हो तो स्वयं करें |

गुरु के लिए-

गुरु
 ०१. नौ या बारह चमेली के फूल नदी में गुरुवार को प्रवाहित करें |
०२. पीले कनेर के फूल विष्णु भगवान को पर्तेक गुरुवार को अर्पण
      करें |
०३. दत्तात्रेय वज्र कवच का पाठ प्रतिदिन करें व भगवान विष्णु का
      पूजन करें |
०५. गुरुवार को नमक का सेवन न करें, चने से बनी हुई वस्तुओं का
      सेवन करें |
०६. केला कभी न खाएं एवं गुरुवार को पीपल के पेड़ व केले के पेड़
      को हल्दी मिलाकर जल चढ़ाएं |
०७. विष्णुसहस्रनाम के १०८ पाठ करें या किसी योग्य ब्राह्मण से
       करवाएं |

शुक्र के लिए-  
०१. सफ़ेद गुलाब के फूल शुक्रवार को नदी या कुएं में डालें |
०२. प्रतेक शुक्रवार को तिल जौ व देशी घी मिलाकर हवं करें |
०३. चांदी के गहने पहनें व गले में हाथी का दांत पहने |
०४. लक्ष्मी या दुर्गा का पूजन करें |
०५. सफ़ेद गाय को शुक्र वार को रोटी खिलाएं |
०६. शुक्र वार को लाल ज्वार व दही किसी धार्मिक स्थान पर दान करें |
०७. सफ़ेद कांच के बर्तन में चांदी डालकर धूप में रखें व बाद में उसे पी लें |
०८.सफ़ेद रेशमी वस्त्र दान करें |
०९. चांदी घोड़े का रोज पूजन करें |

शनि के लिए-
 ०१.शनिवार को सफेदे का पत्ता अपनी जेब में रखें |                                          
 ०२. नारियल के तेल में कपूर मिला के सिर पे लगायें |
 ०३. काले उड़द जल में प्रवाहित करें |
 ०४. ताम्बे या लोहे के पात्र से ही जल पियें |
 ०५. शनिवार को तेल से चुपड़ी रोटी काले कुत्ते को खिलाएं |
 ०६. काले घोड़े की नाल या नाव की कील की अंगूठी बनवाकर मध्यमा ऊँगली
       में शनिवार को पहनें |
 ०७. शनिवार को लोहे के बर्तन में सरसों का तेल व ताम्बे का सिक्का डालकर अपना चेहरा देख कर             
        शनि मंदिर में चढ़ें या मांगने वाले को दें |
 ०८. शनिवार को सरसों का तेल, मांस, अंडा, शराब का शेवन न करें |
 ०९. शनिवार को तेल या शराब बहते पानी में प्रवाहित करें |
 १०. चिड़ियों को बाजरा डालें व पीपल पर जल चढ़ाएं |

राहू के लिए-
०१. शिव जी को बेलपत्र चढ़ाएं व प्रतिदिन शिव मंदिर जाएं |
०२. लोहे के पात्र में रखा जल ही पिएँ  |
०३. नारियल में छेद करके उसके अन्दर ताम्बे का पैसा नदी में बहा दें |
०४. चांदी की अंगूठी बीच वाली ऊँगली में पहनें |
०५. सोमवार को मूली दान करें |
  ०६. ४१ दिन तक १ रूपया प्रतिदिन भंगी को दें |

केतु के लिए-
०१. किसी ज्योतिर्लिंग पे नाग चढ़ाएं |

०२. लोहे के पात्र में रखा जल ही पिएँ |

०३. गुरु पूर्णिमा, गुरु द्वादशी, गुरु पंचमी, गुरु प्रतिपदा, नाग पंचमी, को 
      रुद्राभिषेक करवाएं |

०४. कुतों को रोटी खिलाएं व गरीब और अपाहिज को भोजन करवाएं |

०५. गुड के साथ चांवल बनाकर कोढियों को खिलाएं |

०६. कीड़ों के बिल में तिल डालें |

०७. बेल के अन्दर ताम्बे का पैसा डालकर नदी में बहाएँ  |

 ०८.चांदी की अंगूठी बीच वाली ऊँगली में पहनें |
                                                                                                          "सधन्यवाद"
                                                                                                   आचार्य कमल डिमरी 
                                                                                                  फलित ज्योतिषाचार्य  
                                                                        श्री दर्शन महाविद्यालय / गायत्री ज्योतिष केंद्र १४ बीघा
                                                                                            मुनि की रेती ऋषिकेश {टि. ग.}

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

|| मंगली दोष का विचार ||

मंगली दोष का नाम सुनते ही वर और कन्या के अभिभावक सतर्क हो जाते है,विवाह सम्बन्धो के लिये मंगलिक शब्द एक प्रकार से भय अथा अमंगल का सूचक बन गया है,परन्तु प्रत्येक मंगली जातक विवाह के अयोग्य नही होता है,सामान्यत: मंगलीक दिखाई पडने वाली जन्म पत्रियां भी ग्रहों की स्थिति तथा द्रिष्टि के कारण दोष रहित हो जाती है,यहां मंगली दोष विचार तथा मंगली दोष परिहार विषयक आवश्यक वैदिक जानकारियां प्रस्तुत की जा रही है.

                                                         मंगली दोष का विचार
यदि जातक की जन्म कुण्डली में लग्न यानी प्रथम भाव बारहवें भाव,पाताल चतुर्थ भाव,जामित्र यानी सप्तम भाव, तथा अष्टम में मंगल बैठा हो,तो कन्या अपने पति के लिये तथा पति कन्या के लिये घातक होता है,इसे मंगली दोष कहते है,यदि वर की कुन्डली में धन यानी दूसरे सुत यानी पंचम, सप्तम यानी पत्नी भाव,अष्टम यानी मृत्यु भाव और व्यय यानी बारहवें भाव में मंगल विराजमान हो तो वह उसकी स्त्री का विनाश करता है,और यदि स्त्री की कुन्डली में इन्ही स्थानों में मंगल विराजमान हो तो वह विधवा योग का कारक होता है,मंगल की इस प्रकार की स्थिति के कारण वर और कन्या का विवाह वर्जित है,आचार्यों ने एकादस भाव स्थित मंगल को भी मंगली की उपाधि दी है.

                                                         मंगली दोष परिहार
  • जन्म कुन्डली के प्रथम द्वितीय चतुर्थ सप्तम अष्टम एकादस और द्वादस भावों में किसी में भी मंगल विराजमान हो तो वह विवाह को विघटन में बदल देता है,यदि इन भावों में विराजमान मंगल यदि स्वक्षेत्री हो,उच्च राशि में स्थिति हो,अथवा मित्र क्षेत्री हो,तो दोषकारक नही होता है.
  • यदि जन्म कुन्डली के प्रथम भाव में मंगल मेष राशि का हो,द्वादस भाव में धनु राशि का हो,चौथे भाव में वृश्चिक का हो,सप्तम भाव में मीन राशि का हो,और आठवें भाव में कुम्भ राशि का हो,तो मंगली दोष नही होता है.
  • यदि जन्म कुन्डली के सप्तम,लगन,चौथे,नौवें,और बारहवें भाव में शनि विराजमान हो तो मंगली दोष नही होता है.
  • यदि जन्म कुन्डली में मंगल गुरु अथवा चन्द्रमा के साथ हो,अथवा चन्द्रमा केन्द्र में विराजमान हो,तो मंगली दोष नही होता है.
  • यदि मंगल चौथे,सातवें भाव में मेष,कर्क,वृश्चिक,अथवा मकर राशि का हो,तो स्वराशि एवं उच्च राशि के योग से वह दोष रहित हो जाता है,अर्थात मंगल अगर इन राशियों में हो तो मंगली दोष का प्रभाव नही होता है,कर्क का मंगल नीच का माना जाता है,लेकिन अपनी राशि का होने के कारण चौथे में माता को पराक्रमी बनाता है,दसवें में पिता को पराक्रमी बनाता है,लगन में खुद को जुबान का पक्का बनाता है,और सप्तम में पत्नी या पति को कार्य में जल्दबाज बनाता है,लेकिन किसी प्रकार का अहित नही करता है.
  • केन्द्र और त्रिकोण भावों में यदि शुभ ग्रह हो,तथा तृतीय षष्ठ एवं एकादस भावों में पापग्रह तथा सप्तम भाव का स्वामी सप्तम में विराजमान हो,तो भी मंगली दोष का प्रभाव नही होता है.
  • वर अथवा कन्या की कुन्डली में मंगल शनि या अन्य कोई पाप ग्रह एक जैसी स्थिति में विराजमान हो तो भी मंगली दोष नही लगता है.
  • यदि वर कन्या दोनो की जन्म कुन्डली के समान भावों में मंगल अथवा वैसे ही कोई अन्य पापग्रह बैठे हों तो मंगली दोष नही लगता,ऐसा विवाह शुभप्रद दीर्घायु देने वाला और पुत्र पौत्र आदि को प्रदान करने वाला माना जाता है.
  • यदि अनुष्ठ भाव में मंगल वक्री,नीच (कर्क राशि में) अथवा शत्रु क्षेत्री (मिथुन अथवा कन्या ) अथवा अस्त हो तो वह खराब होने की वजाय अच्छा होता है.
  • जन्म कुन्डली में मंगल यदि द्वितीय भाव में मिथुन अथवा कन्या राशि का हो,द्वादस भाव में वृष अथवा कर्क का हो,चौथे भाव में मेष अथवा वृश्चिक राशि का हो,सप्तम भाव में मकर अथवा कर्क राशि का हो,और आठवें भाव में धनु और मीन का हो,अथवा किसी भी त्रिक भाव में कुम्भ या सिंह का हो,तो भी मंगल दोष नही होता है.
  • जिसकी जन्म कुन्डली में पंचम चतुर्थ सप्तम अष्टम अथवा द्वादस स्थान में मंगल विराजमान हो,तो उसके साथ विवाह नही करना चाहिये,यदि वह मंगल बुध और गुरु से युक्त हो, अथवा इन ग्रहों से देखा जा रहा हो,तो वह मंगल फ़लदायी होता है,और विवाह जरूर करना चाहिये.
  • शुभ ग्रहों से युक्त मंगल अशुभ नही माना जाता है,कर्क लगन में मंगल कभी दोष कारक नही होता है,यदि मंगल अपनी नीच राशि कर्क का अथवा शत्रु राशि तीसरे या छठवें भाव में विराजमान हो तो भी दोष कारक नही होता है.
  • यदि वर कन्या दोनो की जन्म कुन्डली में लग्न चन्द्रमा अथवा शुक्र से प्रथम द्वितीय चतुर्थ सप्तम अष्टम अथवा द्वादस स्थानों के अन्दर किसी भी स्थान पर मंगल एक जैसी स्थिति में बैठा हो,अर्थात वर की कुन्डली में जहां पर विराजमान हो उसी स्थान पर वधू की कुन्डली में विराजमान हो तो मंगली दोष नही रहता है.
  • परन्तु यदि वर कन्या में से केवल किसी एक की जन्म कुन्डली में ही उक्त प्रकार का मंगल विराजमान हो,दूसरे की कुन्डली में नही हो तो इसका सर्वथा विपरीत प्रभाव ही समझना चाहिये,अथवा वह स्थिति दोषपूर्ण ही होती है,यदि मंगल अशुभ भावों में हो तो भी विवाह नही करना चाहिये,परन्तु यदि गुण अधिक मिलते हो,तथा वर कन्या दोनो ही मंगली हो,तो विवाह करना शुभ होता है.
  • * यदि मंगल ग्रह वाले भाव का स्वामी बली हो, उसी भाव में बैठा हो या दृष्टि रखता हो, साथ ही सप्तमेश या शुक्र अशुभ भावों (6/8/12) में न हो।
  • * यदि मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर  
                केंद्र त्रिकोण में   हो।       
           
             * यदि गुरु या शुक्र बलवान, उच्च के होकर सप्तम में हो तथा मंगल निर्बल
                  या नीच राशिगत हो।
           
              * यदि वर-कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में मंगल दोष हो तथा   
                  परकुंडली में उन्ही पाँच में से किसी भाव में कोई पाप ग्रह स्थित हो।
                                     कहा  गया है कि :-
        शनि भौमोअथवा कश्चित्‌ पापो वा तादृशोभवेत्‌।                                                        
                                                                    तेष्वेव भवनेष्वेव भौम-दोषः विनाशकृत्‌॥     

        इनके अतिरिक्त भी कई योग ऐसे होते हैं, जो कुजदोष का परिहार करते हैं।
              अतः मंगल के नाम पर मांगलिक अवसरों को नहीं खोना चाहिए :-
सौभाग्य की सूचिका भी है मंगली कन्या? :-
कन्या की जन्मकुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादशभाव में मंगल होने के बाद भी प्रथम (लग्न, त्रिकोण), चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम तथा दशमभाव में बलवान गुरु की स्थिति कन्या को मंगली होते हुए भी सौभाग्यशालिनी व सुयोग्यभार्या तथा गुणवान व संतानवान बनाती है।

|| कालसर्प योग एवं भ्रान्तियां ||

कालसर्प योग जातक में जीवटता, संघर्षशीलता एवं अन्याय के प्रति लड़ने के लिए अदम्य साहस का सृजन करता हैं । ऐसे जातक अपने ध्येय की सिद्धी के लिए अद्भुत संघर्षशक्ति पाकर उसका दोहन कर सफल होते हैं एवं लोकप्रियता प्राप्त करते हैं । अध्यात्मिक महापुरूषों एवं राजनैतिज्ञों को यह योग अत्यंत रास आता हैं । राजयोग भी यह प्रदान करता हैं । जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसाय, कला, साहित्य, क्रीड़ा, फिल्म, उद्योग, राजनीति एवं आध्यात्मक के चरमोत्कर्ष पर इस योग वाले जातक पहुचे हैं । प्रथम भाव से द्वादश भाव तक बनने वाले अनंत कालसर्प योग से शेष नाग कालसर्प योग तक जातकों में विश्व क्षितिज के श्रेष्टतम महामानव शामिल हैं । उल्लेखनीय हैं कि स्वतंत्र भारत का जन्म भी कालसर्प योग में 15 अगस्त 1947 को हुआ था । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को भी कालसर्प योग था एवं नेहरू जी को शपथग्रहण का मुहूर्त निकालने वाले विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्य पद्मभूषण पं. सूर्य नारायण व्यास को भी कालसर्प योग था ।
अतः कालसर्प योग से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैं विशेष रूप से कालसर्प योगधारी भारतवासी ज्योतिषीय सिद्धांतानुसार कि सामान योग वाले व्यक्तियों में सामंजस्य एवं मित्रता होती हैं एवं वे एक दूसरे के पूरक होते हैं देश के सर्वश्रेष्ठ नागरिक साबित होते हैं यह तालिका में अनेक उदाहरणों द्वारा सुस्पष्ट हैं । राहू क्रूर ग्रह हैं इसे शनि के तुल्य गुणों वाला माना गया हैं शनि के समान इस ग्रह में भी वास्तव में राहू एवं केतु कोई ग्रहीय पिंड न होकर छाया ग्रह हैं । हमें ज्ञात हैं कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही हैं एवं चन्द्रमा पृथ्वी की । पृथ्वी के परिभ्रमण वृत्त के दो बिन्दु परस्पर विपरीत दिशा में पड़ते हैं इन्ही काटबिन्दुओं (छायाओं) को राहू एवं केतु नाम दिया गया हैं । चूॅकि इस सौर मण्डलीय घटना का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता हैं इसलिए ज्योतिषीय गणना में इसे स्थान देकर कुण्डली में अन्य आध्यात्मिक, राजनैतिक चिंतन दीर्घ विचार, ऊॅचनीच सोचकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती हैं । राहू मिथुन राशि में उच्च एवं धनु राशि में नीच का होता हैं । कन्या इसकी मित्र राशि हैं । केतु इसके विपरीत धनु में उच्च एवं मिथुन में नीच का होता हैं । केतु मंगल के गुणों वाला परन्तु अपेक्षाकृत सौम्य ग्रह हैं । शनि, बुध एवं शुक्र राहू के मित्र एवं सूर्य, चन्द्र, मंगल शत्रु तथा गुरूसम हैं । जबकि मंगल केतु का मित्र सूर्य, शनि, राहू शत्रु एवं चन्द्र, बुध, गुरू सम ग्रह हैं । कालसर्प योग युक्त जातक की कुण्डली में सभी ग्रह राहू एवं केतु के मध्य एक ही ओर स्थित होते हैं। माना जाता हैं कि कालसर्प योग में राहू सर्प का सिर एवं केतु पूॅछ वाला भाग हैं । सभी अन्य ग्रह राहू के मुख में गटकाये जाने के कारण इस योग को विपरीत परिणाम का सृजनकर्ता कहा जाता हैं ।
मान्यता हैं कि पिछले जन्म में नागहत्या के कारण यह योग निर्मित होता हैं एवं इसी लिए ऐसे जातकों को सर्पभय हमेशा बना रहता हैं साथ ही स्वप्न में सर्प के दर्शन होते रहेते हैं । गोचर में कालसर्पयोग आने पर लगभग 15 दिवस तक यह सतत बना रहता हैंआवश्यक नहीं हैं कि कालसर्पयोग व पितृदोष की शांति त्रयम्बकेश्वर में ही करवायी जावे
इसकी शांति जहा भी पवित्र नदीं बहती हो उसका किनारा हो, प्रतिष्ठित शिव मन्दिर हो वहा पर की जा सकती हैं । कालसर्प की शान्ति हेतु लोग त्रयम्बकेश्वर जाते हैं लेकिन पूरे शिव पुराण में कहीं नहीं लिखा कि त्रयम्बकेश्वर में ही कालसर्पयोग व पितृदोष की शांति की जाती हैं । लोग भ्रम में हैं व एक भेड़ चाल सी बन गई हैं कि त्रयम्बकेश्वर जाना हैं । त्रयम्बकेश्वर में यजमानों को कर्मकाण्डी मन्दिर नहीं ले जाकर घर में ही पितृदोष व कालसर्प योग की शांति करवा देते हैं जिससे यजमानों को पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती हैं । त्रयम्बकेश्वर द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक हैं वहा जाने से तो धर्म की प्राप्ति होती हैं न कि केवल कालसर्पयोग शांत होता हैं । ईश्वर में मनुष्य को दण्ड देने के लिए घातक योग बनाये हैं तो उसका उपचार भक्ति एवं मंत्रों के माध्यम से बताया भी हैं
उपचार से कालसर्प योग समाप्त तो नहीं होता हैं, और होने वाले कष्टों से पूर्ण मुक्ति भी नहीं मिलती हैं लेकिन 25 से 85 प्रतिशत तक राहत मिलने की सम्भावनाये रहती हैं ।
                                                      कालसर्प योग निवारणकालसर्प
योग निवारण के अनेक उपाय हैं । इस योग की शांति विधि विधान के साथ योग्य विद्धान एवं अनुभवी ज्योतिषी, कुल गुरू या पुरोहित के परामर्श के अनुसार किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से यथा योग्य समयानुसार करा लेने से दोष का निवारण हो जाता हैं । कुछ साधारण उपाय निम्न हैं:-
1. घर में वन तुलसी के पौधे लगाने से कालसर्प योग वालों को शान्ति प्राप्त होती हैं । 2. प्रतिदिन ‘‘सर्प सूक्त‘‘ का पाठ भी कालसर्प योग में राहत देता हैं ।
3. विश्व प्रसिद्ध तिरूपति बाला जी के पास काल हस्ती शिव मंदिर में भी कालसर्प योग शान्ति कराई जाती हैं।
4. इलाहाबाद संगम पर व नासिक के पास त्रयंबकेश्वर में व केदारनाथ में भी शान्ति कराई जाती हैं ।
5. ऊँ नमः शिवाय मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करें । नाग पंचमी का वृत करें, नाग प्रतिमा की अंगुठी पहनें ।
6. कालसर्प योग यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर नित्य पूजन करें । घर एवं दुकान में मोर पंख लगाये ।
7. ताजी मूली का दान करें । मुठ्ठी भर कोयले के टुकड़े नदी या बहते हुए पानी में बहायें ।
8. महामृत्युंजय जप सवा लाख , राहू केतु के जप, अनुष्ठान आदि योग्य विद्धान से करवाने चाहिए ।
9. नारियल का फल बहते पानी में बहाना चाहिए । बहते पानी में मसूर की दाल डालनी चाहिए ।
10. पक्षियों को जौ के दाने खिलाने चाहिए ।
11. पितरों के मोक्ष का उपाय करें । श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध श्रृृद्धा पूर्वक करना चाहिए । कुलदेवता की पूजा अर्चना नित्य करनी चाहिए ।
12. शिव उपासना एवं रूद्र सूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करने से यह योग शिथिल हो जाता हैं ।
13. सूर्य अथवा चन्द्र ग्रहण के दिन सात अनाज से तुला दान करें ।
14. 72000 राहु मंत्र ‘‘ऊँ रां राहवे नमः‘‘ का जप करने से काल सर्प योग शांत होता हैं । 15. गेहू या उड़द के आटे की सर्प मूर्ति बनाकर एक साल तक पूजन करने और बाद में नदी में छोड़ देने तथा तत्पश्चात नाग बलि कराने से काल सर्प योग शान्त होता हैं । 16. राहु एवं केतु के नित्य 108 बार जप करने से भी यह योग शिथिल होता हैं । राहु माता सरस्वती एवं केतु श्री गणेश की पूजा से भी प्रसन्न होता हैं ।
17. हर पुष्य नक्षत्र को महादेव पर जल एवं दुग्ध चढाएं तथा रूद्र का जप एवं अभिषेक करें ।
18. हर सोमवार को दही से महादेव का ‘‘ऊँ हर-हर महादेव‘‘ कहते हुए अभिषेक करें । 20. राहु-केतु की वस्तुओं का दान करें । राहु का रत्न गोमेद पहनें । चांदी का नाग बना कर उंगली में धारण करें ।
21. शिव लिंग पर तांबे का सर्प अनुष्ठानपूर्वक चढ़ाऐ। पारद के शिवलिंग बनवाकर घर में प्राण प्रतिष्ठित करवाए ।