![]() |
माँ दुर्गा |
कामना भेद से विभिन्न प्रकार से दुर्गा पाठ किए जाते हैं, जो कि निर्णय सिन्धु मे उल्लिखित है कि दुर्गाभक्तितर गिणी के अनुसार इस प्रकार से हैं :-
01 :- महाविद्या क्रम (सर्वकामना हेतु) :- इसमे क्रमशः प्रथम, मध्यम व उत्तर चरित्र का पाठ किया जाता है !
02:- महातंत्री (शत्रु नाश, लक्ष्मी प्राप्ति हेतु) :- उत्तर चरित्र, प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र का पाठ किया जाता है !
03:- चन्डी (शत्रु नाश हेतु) :- उत्तर, मध्यम, प्रथम चरित्र का पाठ किया जाता है !
04:- महाचण्डी (शत्रु नाश, लक्ष्मी प्राप्ति हेतु) :- उत्तर चरित्र, प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र का पाठ किया जाता है !
05:- रूप दीपिका ( विजय एवं आरोग्यता के लिए) :- रूपं देहि जयं देही यशो देही........ इस अर्ध श्लोक से संपुटित करके प्रथम, उत्तर, मध्यम चरित्र का पाठ करना चाहिए !
इसके अलावा तंत्र शास्त्रों मे निम्न क्रम उल्लिखित हैं :-
01:- निकुंभला ( रक्षा, विजय हेतु) :- शूलेन पाहिनो देवी............ इस मंत्र से संपुटित करके मध्यम, प्रथम, उत्तर चरित्र का पाठ करना चाहिए !
02:- योगिनी (बालोपद्रव शमन हेतु) :- प्रतेक चरित्र से पहले संबन्धित योगिनियों का पाठ एवं प्रटेक मंत्र को वं, शम, षम, सं से संपुटित करके पाठ करें !
03:- विलोम (शत्रु नाश हेतु) संहार क्रम :- तेहरवें अध्याय के अंतिम श्लोक से प्रारम्भ कर प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक पर समाप्त करें ! अर्थात पूरा उल्टा पाठ करें !
04:- प्रतिअध्याय विलोम लोम पाठ ( उत्कीलन क्रम) :- इसमे इस करम से पाठ होगा तेहरवां-प्रथम, बारहवां-दूसरा, ग्यारहवाँ-तीसरा, दसवां-चौथा, नवम-पंचम, आठवाँ-छठा, सातवाँ विलोम ओर फिर सातवाँ ही अनुलोम पाठ करें !
05:- चतुःषष्ठी पड़ी युक्त :- (क) :- श्री सूक्त या पुरुसूक्त का पाठ प्रटेक अध्याय के साथ करें !
(ख) :- महिषासुर वध के समय 64 देवियों का प्राकाट्य भी लिखा है, उनकी नामावली का पाठ भी प्रति अध्याय के साथ किया जा सकता है !
06:- तंत्रात्मक सप्तशती :- प्रतेक मंत्र का विनियोग न्यास ध्यान युक्त पाठ करें !
07:- इसके अलावा अन्य मंत्रों जैसे बगलामुखी, महामृतुंजय आदि से संपुटित करके भी अनेक कामनाओं की पूर्ति की जाती है !
नोट :- (क) चरित्रों का वर्णन इस प्रकार से है :- प्रथम चरित्र ( प्रथम अध्याय), मध्यम चरित्र ( दूसरा-तीसरा-चौथा अध्याय), उत्तर चरित्र (पाँचवाँ- छठा-सातवाँ-आठवाँ-नौवाँ-दसवाँ-ग्यारहवाँ-बारहवाँ-तेरहवाँ अध्याय) !
(ख) प्रथम अध्याय के पूर्व (पहले) कवच, अर्गला, कीलक, नवार्ण मंत्र जप व रात्रि सूक्त का पाठ करें व अंत मे देवीसूक्त नवार्ण मंत्र जप एवं त्रिरहस्यों का पाठ करें !
दुर्गा पाठ के छः मुख्य अंग माने गए हैं :-
01-कवच, 02-अर्गला, 03-कीलक, 04-प्राधानिक-रहस्य, 05-वैकृतिक-रहस्य, 06-मूर्ति-रहस्य !
सप्तशती के प्रसिद्ध टीकाकार नागोजी भट्ट का मत है कि :- इस प्रकार पाठ करें कवच, अर्गला, कीलक, का पाठ करें व फिर ऋस्यादिन्यास के सहित नवार्ण मंत्र जप, इसके बाद रात्रि सूक्त ओर फिर पाठ तथा अंत मे देविसूक्त का पाठ तदनंतर 108 बार नवर्ण मंत्र का जप करें !
एक मत यह भी है की सप्तशती का पाठ करने से पूर्व उसका शापोद्धार, उत्कीलन, आदि करना चाहिए !
एक मत है की पाठ से पूर्व मार्कन्डेय पुराणोक्त सरस्वती सूक्त का भी पाठ करें !
रावण के मत से निकुंभला पाठ अति श्रेष्ठ है !
मेरे व्यक्तिगत मत से सप्तशती क्रम इस प्रकार रखना श्रेष्ठ है पहले माध्यम चरित्र, फिर प्रथम चरित्र, ओर फिर उत्तर चरित्र का पाठ करना चाहिए क्यूंकि इस क्रम से पाठ करने पर पाठ का उत्कीलन भी हो जाता है ओर अधिक सफलता भी मिलती है !
सम्पूर्ण दुर्गा पाठ का क्रम (सुप्रसिद्ध टिकाओं के आधार पर एवं निर्णय सिंधु के आधार पर ):-
01:- सर्व प्रथम आचमन, प्राणायाम, पवित्रीकरण, आसन पवित्रीकरण आदि करें |
02:- फिर संकल्प करें |
03:- फिर ब्रह्मादि शाप विमोचन करें यह अति आवश्यक है क्यूँ की लिखा है की - "इन (ब्रह्मादि शाप विमोचन ) मंत्रों को पढ़ कर ही पाठ करें दिन या रात अपनी सुविधा अनुसार पाठ करें, तथा जो इन मंत्रों को पढे या जाने बिना पाठ करता है वह स्वयं एवं यजमान के नाश का कारण बनता
है |
04:- इसके बाद सिद्धकुंजिका-स्तोत्र का पाठ करें !
05:- तत्पश्चात कवच, अर्गला, कीलक का पाठ करें |
06:- फिर ऋष्यादि न्यास पूर्वक नवार्ण मंत्र का जप करें |
07:- फिर तन्त्रोक्त रात्रि सूक्तम का पाठ करें |
08:- इसके पश्चात सप्तशती न्यास व ध्यान करें |
09:- फिर चरित्र (अध्याय) पाठ करें, अध्याय पाठ अपनी सुविधा अनुसार क्रम, उत्क्रम, चंड, महाचण्डी आदि जो भी क्रम उचित लगे उस अनुसार करें |
10:- चरित्र (अध्याय) पाठ समाप्ति के बाद उत्तर न्यास करें तथा तन्त्रोक्त देवी सूक्त का पाठ
करें |
11:- तत्पश्चात नवार्न मंत्र का जप करें तथा त्रिरहस्य ( प्राधानिक-रहस्य, वैकृतिक-रहस्य, मूर्ति-रहस्य) का पाठ करें |
12:- फिर उत्तर पूजन एवं क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें |
इतना ही पाठ आवश्यक है |
संपुट कैसे लगाएँ :-
संपुट तीन प्रकार से लगाए जाते हैं 01-उदय-संपुट, 02-अस्त-संपुट, 03-अर्द्ध-संपुट |
01:- उदय संपुट :- इस संपुट मे पहले संपुट मंत्र फिर सप्तशती मंत्र फिर संपुट मंत्र सीधा लगाया जाता है | जैसे :- ॐ एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः | ऐं मार्कन्डेय उवाच | एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः ||
02:- अस्त संपुट :- इस संपुट मे पहले संपुट मंत्र सीधा फिर फिर सप्तशती मंत्र फिर संपुट मंत्र उल्टा लगाया जाता है | जैसे :- ॐ एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः | ऐं मार्कन्डेय उवाच | क्षत्रियर्षभःसुरथःलब्ध्वा वरं देव्या एवं ॐ ||
03:- अर्द्ध संपुट :- कामना मंत्र को सिर्फ एक बार पहले या अंत मे पढ़ा जाता है | जैसे :- ॐ एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः | ऐं मार्कन्डेय उवाच |
अथवा
ॐ ऐं मार्कन्डेय उवाच | एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः |
इन तीन प्रकार के संपुटों के विधान का विवरण श्री शिव-पार्वती के संवाद के अंतर्गत रुद्र यामलतंत्रादि ग्रन्थों मे प्राप्त होता है |
दुर्गा पाठ मे वृद्धि (बढ़ते) क्रम का विचार :-
वृद्धि पाठ पाँच दिन का होता है, यह क्रम बिना संपुट के ही संभव है | प्रथम दिन एक पाठ, दूसरे दिन दो, तीसरे दिन तीन, चौथे दिन चार इस प्रकार चार दिन मे एक ब्राह्मण द्वारा दस पाठ किए जाते है ओर दस ब्राह्मणों द्वारा शतचंडी का विधान पूरा हो जाता है | इसके साथ ही एक मूल पाठ के साथ 10 माला अलग से नवार्ण मंत्र जप करने का भी विधान है | तथा पांचवें दिन दशांश हवन दशांश ब्राह्मण भोजन व कुमारिका बोजान करवाएँ !
यह दुर्गा सप्तशती के विभिन्न पाठ क्रम थे अतिरिक्त जानकारी हेतु संपर्क करें :-
गायत्री ज्योतिष केंद्र एवं शोध संस्थान 14 बीघा, टिहरी गढ़वाल, ऋषिकेश
फोन नंबर :- 9759487768, 9548712787
|| jay shree hari || prabhu apke dwara di gayi jankari bahut sundar thi aur gyan ko badhane wali thi.main apka aabhar prakat karta hun. dhanyawad
जवाब देंहटाएंved prakash - 09873342143