बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

मुहूर्त्त विचार-

मुहूर्त को भारतीय ज्योतिष में किसी कार्य विशेष को प्रारंभ एवं संपादित करने हेतु एक निर्दिष्ट शुभ समय कहा गया है. ज्योतिष के अनुसार शुभ मुहूर्त में कार्य प्रारंभ करने से कार्य बिना किसी रुकावट के और शीघ्र संपन्न होता है. चाहे प्रश्न शास्त्र हो या जन्म कुण्डली दोनों ही मुहूर्त्त पर आधारित हैं. मुहूर्त पंचांग के पांच अंगों अर्थात तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण द्वारा निर्मित होता है. पंचाग गणना के आधार पर शुभ और अशुभ मुहूर्तों का निर्धारण किया जाता है. मुहूर्त्त को प्रत्येक कार्य के अनुसार भिन्न भिन्न रुप में लिया जाता है.

मुहूर्त्त संस्कार -
भारतीय संस्कृति के षोडश संस्कारों में मुहूर्त के विषय में मुहूर्त्त शास्त्र में पृथक रूप से वर्णन प्राप्त होत है. जिसमें यह बताया गया है कि तिथि, वार, नक्षत्र आदि के संयोग से भी मुहूर्त बनते हैं, जिनमें संस्कार एवं विशिष्ट कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी किये जा सकते हैं.
शुभ मुहूर्त्त -
शुभ मुहूर्त वरदान स्वरुप होते हैं, विवाह, मुंडन, गृहारंभादि शुभ कार्यों में मास, तिथि, नक्षत्र, योगादि के साथ लग्न की शुद्धि को विशेष महत्व एवं प्रधानता दी जाती है. तिथि को देह, चंद्रमा को मन, योग, नक्षत्र आदि को शरीर के अंग तथा लग्न को आत्मा माना गया है इस प्रकार मुहूर्त का महत्व स्वयं में प्रर्दशित हो जाता है. मुहूर्त शास्त्र में कई प्रकार के शुभ मुहूर्त्तों का वर्णन किया गया है जैसे सर्वार्थसिद्धि योग, सिद्धि योग, अमृतसिद्धि योग, राज योग, रविपुष्य योग, गुरुपुष्य योग, द्वि-त्रिपुष्कर योग, पुष्कर योग तथा रवि योग इत्यादि योग बताए गए हैं.
मुहूर्त संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य -
मुहूर्त्त संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातों के विषय में ध्यान देना आवश्यक होता है. मुहूर्त्त में तिथियों का ध्यान रखना चाहिए जैसे रिक्ता में कार्यों का आरंभ न करें तथा अमावस्या तिथि में मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. जब कोई भी ग्रह जिस दिन अपना राशि परिवर्तन कर रहा हो तो उस समय न किसी भी कार्य की योजना बनाएं और न ही कोई नया कार्य आरंभ करें.

जब भी कोई ग्रह उदय या अस्त हो या जन्म राशि का या जन्म नक्षत्र का स्वामी यदि अस्त हो, वक्री हो अथवा शत्रु ग्रहों के मध्य में हो तो वह समय अनुकूल कार्य को करने के लिए उपयुक्त नहीं होता. मुहूर्त्त में इन सभी बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है.
कुण्डली का मुहूर्त्त से संबंध -
जन्म कुण्डली अनुकूल मुहूर्त्त का निर्धारण करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जन्म समय की ग्रह स्थिति को बदला तो नहीं जा सकता लेकिन शुभ समय मुहूर्त्त को अपना कर कार्य को सफलता की और उन्मुख किया जा सकता है. ज्योतिष के अनुसार कुण्डली के दोषों के प्रभाव से बचने के लिए यदि अच्छी दशा में तथा शुभ गोचर में शुभ मुहूर्त्त का चयन किया जाए तो कार्य की शुभता में वृद्धि हो सकती है.
मुहूर्त महत्व-
किसी भी कार्य को करने हेतु एक अच्छे समय की आवश्यकता होती है. हर शुभ मुहूर्त का आधार तिथि, नक्षत्र, चंद्र स्थिति, योगिनी दशा और ग्रह स्थिति के आधार पर किया जाता है. शुभ कार्यों के प्रारंभ में भद्राकाल से बचना चाहिये. चर, स्थिर लग्नों का ध्यान रखना चाहिए. जिस कार्य के लिए जो समय निर्धारित किया गया है यदि उस समय पर उक्त कार्य किया जाए तो मुहूर्त्त के अनुरूप कार्य सफलता को प्राप्त करता है

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

दुर्गासप्तशती के पाठ के विषय मे एक सामान्य विषय एवं पाठ क्रम :-

माँ दुर्गा 
दुर्गासप्तशती के पाठ के विषय मे एक सामान्य विषय एवं पाठ क्रम :-
कामना भेद से विभिन्न प्रकार से दुर्गा पाठ किए जाते हैं, जो कि निर्णय सिन्धु मे उल्लिखित है कि दुर्गाभक्तितर गिणी के अनुसार इस प्रकार से हैं :-
01 :- महाविद्या क्रम (सर्वकामना हेतु) :- इसमे क्रमशः प्रथम, मध्यम व उत्तर चरित्र का पाठ किया जाता है !
02:- महातंत्री (शत्रु नाश, लक्ष्मी प्राप्ति हेतु) :- उत्तर चरित्र, प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र का पाठ किया जाता है !
03:- चन्डी (शत्रु नाश हेतु) :- उत्तर, मध्यम, प्रथम चरित्र का पाठ किया जाता है !
04:- महाचण्डी (शत्रु नाश, लक्ष्मी प्राप्ति हेतु) :- उत्तर चरित्र, प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र का पाठ किया जाता है !
05:- रूप दीपिका ( विजय एवं आरोग्यता के लिए) :- रूपं देहि जयं देही यशो देही........ इस अर्ध श्लोक से संपुटित करके प्रथम, उत्तर, मध्यम चरित्र का पाठ करना चाहिए !
इसके अलावा तंत्र शास्त्रों मे निम्न क्रम उल्लिखित हैं :-
01:- निकुंभला ( रक्षा, विजय हेतु) :- शूलेन पाहिनो देवी............ इस मंत्र से संपुटित करके मध्यम, प्रथम, उत्तर चरित्र का पाठ करना चाहिए !
02:- योगिनी (बालोपद्रव शमन हेतु) :- प्रतेक चरित्र से पहले संबन्धित योगिनियों का पाठ एवं प्रटेक मंत्र को वं, शम, षम, सं से संपुटित करके पाठ करें !
03:- विलोम (शत्रु नाश हेतु) संहार क्रम :- तेहरवें अध्याय के अंतिम श्लोक से प्रारम्भ कर प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक पर समाप्त करें ! अर्थात पूरा उल्टा पाठ करें !
04:- प्रतिअध्याय विलोम लोम पाठ ( उत्कीलन क्रम) :- इसमे इस करम से पाठ होगा तेहरवां-प्रथम, बारहवां-दूसरा, ग्यारहवाँ-तीसरा, दसवां-चौथा, नवम-पंचम, आठवाँ-छठा, सातवाँ विलोम ओर फिर सातवाँ ही अनुलोम पाठ करें !
05:- चतुःषष्ठी पड़ी युक्त :- (क) :- श्री सूक्त या पुरुसूक्त का पाठ प्रटेक अध्याय के साथ करें !
(ख) :- महिषासुर वध के समय 64 देवियों का प्राकाट्य भी लिखा है, उनकी नामावली का पाठ भी प्रति अध्याय के साथ किया जा सकता है !
06:- तंत्रात्मक सप्तशती :- प्रतेक मंत्र का विनियोग न्यास ध्यान युक्त पाठ करें !
07:- इसके अलावा अन्य मंत्रों जैसे बगलामुखी, महामृतुंजय आदि से संपुटित करके भी अनेक कामनाओं की पूर्ति की जाती है !

नोट :- (क) चरित्रों का वर्णन इस प्रकार से है :- प्रथम चरित्र ( प्रथम अध्याय), मध्यम चरित्र ( दूसरा-तीसरा-चौथा अध्याय), उत्तर चरित्र (पाँचवाँ- छठा-सातवाँ-आठवाँ-नौवाँ-दसवाँ-ग्यारहवाँ-बारहवाँ-तेरहवाँ अध्याय) !
(ख) प्रथम अध्याय के पूर्व (पहले) कवच, अर्गला, कीलक, नवार्ण मंत्र जप व रात्रि सूक्त का पाठ करें व अंत मे देवीसूक्त नवार्ण मंत्र जप एवं त्रिरहस्यों का पाठ करें !

दुर्गा पाठ के छः मुख्य अंग माने गए हैं :-
01-कवच, 02-अर्गला, 03-कीलक, 04-प्राधानिक-रहस्य, 05-वैकृतिक-रहस्य, 06-मूर्ति-रहस्य !
सप्तशती के प्रसिद्ध टीकाकार नागोजी भट्ट का मत है कि :- इस प्रकार पाठ करें कवच, अर्गला, कीलक, का पाठ करें व फिर ऋस्यादिन्यास के सहित नवार्ण मंत्र जप, इसके बाद रात्रि सूक्त ओर फिर पाठ तथा अंत मे देविसूक्त का पाठ तदनंतर 108 बार नवर्ण मंत्र का जप करें !
एक मत यह भी है की सप्तशती का पाठ करने से पूर्व उसका शापोद्धार, उत्कीलन, आदि करना चाहिए !
एक मत है की पाठ से पूर्व मार्कन्डेय पुराणोक्त सरस्वती सूक्त का भी पाठ करें !
रावण के मत से निकुंभला पाठ अति श्रेष्ठ है !
मेरे व्यक्तिगत मत से सप्तशती क्रम इस प्रकार रखना श्रेष्ठ है पहले माध्यम चरित्र, फिर प्रथम चरित्र, ओर फिर उत्तर चरित्र का पाठ करना चाहिए क्यूंकि इस क्रम से पाठ करने पर पाठ का उत्कीलन भी हो जाता है ओर अधिक सफलता भी मिलती है !

सम्पूर्ण दुर्गा पाठ का क्रम (सुप्रसिद्ध टिकाओं के आधार पर एवं निर्णय सिंधु के आधार पर ):-
01:- सर्व प्रथम आचमन, प्राणायाम, पवित्रीकरण, आसन पवित्रीकरण आदि करें |
02:- फिर संकल्प करें |
03:- फिर ब्रह्मादि शाप विमोचन करें यह अति आवश्यक है क्यूँ की लिखा है की - "इन (ब्रह्मादि शाप विमोचन ) मंत्रों को पढ़ कर ही पाठ करें दिन या रात अपनी सुविधा अनुसार पाठ करें, तथा जो इन मंत्रों को पढे या जाने बिना पाठ करता है वह स्वयं एवं यजमान के नाश का कारण बनता
है |
04:- इसके बाद सिद्धकुंजिका-स्तोत्र का पाठ करें !
05:- तत्पश्चात कवच, अर्गला, कीलक का पाठ करें |
06:- फिर ऋष्यादि न्यास पूर्वक नवार्ण मंत्र का जप करें |
07:- फिर तन्त्रोक्त रात्रि सूक्तम का पाठ करें |
08:- इसके पश्चात सप्तशती न्यास व ध्यान करें |
09:- फिर चरित्र (अध्याय) पाठ करें, अध्याय पाठ अपनी सुविधा अनुसार क्रम, उत्क्रम, चंड, महाचण्डी आदि जो भी क्रम उचित लगे उस अनुसार करें |
10:- चरित्र (अध्याय) पाठ समाप्ति के बाद उत्तर न्यास करें तथा तन्त्रोक्त देवी सूक्त का पाठ
करें |
11:- तत्पश्चात नवार्न मंत्र का जप करें तथा त्रिरहस्य ( प्राधानिक-रहस्य, वैकृतिक-रहस्य, मूर्ति-रहस्य) का पाठ करें |
12:- फिर उत्तर पूजन एवं क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें |
इतना ही पाठ आवश्यक है |

संपुट कैसे लगाएँ :-
संपुट तीन प्रकार से लगाए जाते हैं 01-उदय-संपुट, 02-अस्त-संपुट, 03-अर्द्ध-संपुट |
01:- उदय संपुट :- इस संपुट मे पहले संपुट मंत्र फिर सप्तशती मंत्र फिर संपुट मंत्र सीधा लगाया जाता है | जैसे :- ॐ एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः | ऐं मार्कन्डेय उवाच | एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः ||

02:- अस्त संपुट :- इस संपुट मे पहले संपुट मंत्र सीधा फिर फिर सप्तशती मंत्र फिर संपुट मंत्र उल्टा लगाया जाता है | जैसे :- ॐ एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः | ऐं मार्कन्डेय उवाच | क्षत्रियर्षभःसुरथःलब्ध्वा वरं देव्या एवं ॐ ||

03:- अर्द्ध संपुट :- कामना मंत्र को सिर्फ एक बार पहले या अंत मे पढ़ा जाता है | जैसे :- ॐ एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः | ऐं मार्कन्डेय उवाच |
अथवा
ॐ ऐं मार्कन्डेय उवाच | एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः |
इन तीन प्रकार के संपुटों के विधान का विवरण श्री शिव-पार्वती के संवाद के अंतर्गत रुद्र यामलतंत्रादि ग्रन्थों मे प्राप्त होता है |

दुर्गा पाठ मे वृद्धि (बढ़ते) क्रम का विचार :-
वृद्धि पाठ पाँच दिन का होता है, यह क्रम बिना संपुट के ही संभव है | प्रथम दिन एक पाठ, दूसरे दिन दो, तीसरे दिन तीन, चौथे दिन चार इस प्रकार चार दिन मे एक ब्राह्मण द्वारा दस पाठ किए जाते है ओर दस ब्राह्मणों द्वारा शतचंडी का विधान पूरा हो जाता है | इसके साथ ही एक मूल पाठ के साथ 10 माला अलग से नवार्ण मंत्र जप करने का भी विधान है | तथा पांचवें दिन दशांश हवन दशांश ब्राह्मण भोजन व कुमारिका बोजान करवाएँ !

यह दुर्गा सप्तशती के विभिन्न पाठ क्रम थे अतिरिक्त जानकारी हेतु संपर्क करें :-
गायत्री ज्योतिष केंद्र एवं शोध संस्थान 14 बीघा, टिहरी गढ़वाल, ऋषिकेश
फोन नंबर :- 9759487768, 9548712787
माँ पीताम्बरा बगलामुखी 
माँ पीताम्बरा बगलामुखी की उत्पत्ति :-
उत्पत्ति का कारक :- विष्णु की तपस्या !
दिन :- मंगलवार !
जन्मस्थान :- सौराष्ट्र के हरिद्रासरोवर के वत्स तटस्थ जल में !
तिथि :- चतुर्दशी !
समय :- अर्धरात्रि !
जन्म पूर्व की स्थिति :- 'सुंदरी' की जलक्रीड़ा !
मूल स्वरूप :- महात्रिपुरसुंदरी !
सारांश :- वीर रात्रि में जन्म !

अथ वक्ष्यामी देवेशि बग्लोत्पत्तिकारणम !
पुरा कृतयुगे देवि ! वातक्षोभ उपस्थिते !!१!!
चराचरविनाशाय विष्णुश्चिंतपरायण !
तपस्यया च सन्तुष्टा महात्रिपुरसुंदरी !!२!!
हरिद्राख्या सरो दृष्ट्वा जल क्रीडा परायणा !
महापीतह्रदस्यान्ते सौराष्ट्रे बगलामबिकाम !!३!!
श्रीविध्यासंभवं तेजः विजृंभती इतस्ततः !
चतुर्दशी भौमयुक्ता मकारेण समानविता !!४!!
कुलॠक्षसमायुक्ता वीररात्रि प्रकीर्तिताः !
तस्यामेवार्धरात्रौ तु पीत ह्रद निवासिनी !!५!!
ब्रह्मास्त्रविध्या सञ्जाता त्रैलोक्य स्तंभिनी !
तत्तेजो विष्णुजं तेजो विध्याSनुध्योर्गतम !!६!!
( स्वतंत्रतन्त्र )
अर्थात :-
एक समय सत युग मे एक भयानक वात्याचक्र (तूफान) आया | वह इतना भयानक था कि उसके प्रभाव से समस्त चराचर जगत में त्राहि-त्राहि मच गयी | उस समय सेषशायी भगवान विष्णु अत्यंत चिंतित हुये एवं इसके शांत्यर्थ तप करने लगे |
भगवान नारायण की इस तपस्या प्रसन्न होकर भगवती महात्रिपुर सुंदरी ने सौराष्ट्र मे हरिद्रा नामक सरोवर को देखकर उस गाढ़े पीले रंग एवं अत्यंत गहरे सरोवर में जल क्रीडा करने के लिए प्रकट हुयी | उस समय उनकी जल क्रीडा क्रिया के कारण उनकी श्रीविध्या से एक लोकोत्तर एवं
अभूतपूर्व महातेज आविर्भूत होकर चतुर्दिक फ़ेल गया |
भगवती के जल-क्रीडा हेतु हरिद्रा-सरोवर में अवतरित होने कि तिथि चतुर्दशी थी, दिन मंगलवार था तथा रात्रि का समय था | उस रात्रि का नाम "वीररात्रि" पड़ा | उस रात्रि को पञ्च मकार से सेवित भगवती ने प्रकट होकर उस रात्रि उस गहरे एवं पीले ह्रद में ही निवास किया |
श्रीविद्या के महातेज से दूसरी ब्रह्मास्त्रविद्या का अभिर्भाव हुआ | उस ब्रह्मास्त्रविद्या का महातेज विष्णु से आभिर्भूत महातेज में विलीन हो गया और वह तेज विद्या एवं अनुविद्या मे लयीभूत हो गया |सांख्यायन तंत्र के अनुसार एक बार जब भगवान शंकर सभी शिव गणों के सहित कैलास पर विराजमान थे तब क्रौंचभेदन ने भगवान शिव से कहा :- हे प्रभु ! चापचर्या में निपुण युद्धचर्या मे भयानक एवं मायावी राक्षसों पे मैं कैसे विजय प्राप्त करूँ | भगवान शिव ने कहा की शत्रुओं का संहार बिना ब्रह्मास्त्र के संभव नहीं है - "ब्रह्मास्त्रेण विना शत्रोः संहारो न भवेत किलः |"
इसके बाद उन्होने क्रौंचभेदन को :-
ब्रह्मास्त्रस्तंभिनी विद्या, स्तब्धमायानु प्रवृत्तिरोधिनी विद्या, बग्लामंत्र जीवनविद्या, प्राणिप्रज्ञापहारिका विद्या, षटकर्माधारविद्या, षडविदयागमपूजिता तिरस्कृताखिला विद्या, त्रिशक्ति बगला विद्या (विद्या च बगला नाम्नी), वाक्यस्तंभिनी विद्या, महाविद्या कमलासनजीवनीं, -इस नामावली का उपदेश दिया |
इस नामावली मे जीतने भी कर्मों का उल्लेख हुआ है उन समस्त कर्मों का साधन बगलामुखी ब्रह्मास्त्र विद्या से किया जा सकता है |
इस विद्या की सिद्धि के लिए भगवान शंकर को गुरु स्वरूप माने | क्यूँ की इस विद्या के प्रथम उपदेष्टा भगवान शंकर ही हैं |

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

ज्योतिष में शकुन शास्त्र का महत्व :-

यद्यपि वर्तमान समय में शकुन शास्त्र का बहुविध प्रचलन है की और शकुन शास्त्र विषयक बहुतायत ग्रन्थ बाजार में उपलब्ध है किन्तु फिर भी हम एक लघु प्रयास कर रहे है और सुभासुभ सकुनों के बारे में बता रहे है :-
शकुन अर्थात हमारे सामने होने वाले सुभासुभ घटनाएं | शकुन शास्त्र का बहुत प्राचीन समय से प्रचलन है और इसका प्रचलन भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी हमेसा प्रयोग में रहा शेक्सपियर के सब्दों में :- "जब भिखारी मरते हैं तो कोई धूम केतु नहीं दिखाई देते किन्तु किन्तु जब कोई राजकुमार मरता है तो सारा ब्रह्माण्ड प्रज्वलित हो जाता है |
शकुन मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते है :-
०१- भौम :-
ये पृथिवी से सम्बंधित होते हैं जैसे की भूकंप, ज्वालामुखी, तूफ़ान, झंझावत, अकाल, बाढ़ आदि |
०२- अंतरिक्ष :-
ये आकाश से सम्बंधित होते हैं जैसे की ग्रहण, उल्कापात, ग्रहों का उदयास्त, ग्रह युद्ध, ग्रह
   युति आदि |
०३- स्वप्निक :-
स्वप्न में द्रिस्तिगोचार होने वाले सुभाशुभ के आधार पर भावी घटनाओं का उदघाटन होना आदि |
०४- शारीरिक :-
ये शरीर में निर्मित चिन्हों के आधार पर जैसे की हाथ पैरों में निर्मित तिलादी, शरीर के स्पर्श से सूचित संकेतों के आधार पर सुभाशुभ फल कथन | प्राचीन काल में इसे सामुद्रिक शास्त्र के नाम से जाना जाता था |
०५- विभिन्न शकुन :-
वे शकुन जो उपरोक्त चार श्रेणियों में नहीं आते उन्हें स्थूलतः विभिन्न शकुनों की श्रेणी में रखा जाता है | यथा "कोई भी व्यक्ति किसी नष्ट वास्तु के विषय में प्रश्न करने आया हो और आप कुछ ढूंढ रहे हों और वह मिल जाए तो कह दीजिये की आपकी नष्ट वास्तु शीघ्र प्राप्त हो जायेगी" इस प्रकार के शकुन उपरोक्त चार श्रेणी के शकुनों में नहीं आते किन्तु फल दाई सिद्ध होते हैं |

सामान्य रूप से शुभाशुभ शकुन :-
सामान्य सुभ शकुन :-
बन्दर, घोडा, भालू, हाथी आदि का नजर आना व उनकी आवाजों का सुनाई देना | पके हुए चावल (भात), दूध, दलिया, मादक पेय, विषम संख्या के पशु, प्रसिद्ध व्यक्ति, ब्राहमण, अमूल्य रत्न, मधु, घी, इत्र, हल्की वायु, आँखों को प्रीतिकर लगने वाली सभी वस्तुएं | भोजन से पहले, वस्त्र पहनने से पहले, सोने से पहले, शिक्षा ग्रहण करने से पहले, फसलों की बुवाई करने से पहले छींक आना सुभ है |
बांसुरी, शंख, गायों की आवाजें, प्रश्न करता बिना किसी गतिविधि के शांत हो और उसके मुख पर प्रशन्नता का भाव हो, मधुर व सुखद आवाजें सुनाई दे रही हों, प्रश्न करता द्वारा स्वच्छ व सुन्दर हलके रंग का वस्त्र पहना हो, बांयी ओर बिल्ली का दिखायी देना अपने मुहँ में गाय कुछ खाध्य सामग्री लिए हुए जुगाली कर रही हो, सूअर यदि पूरी तरह से कीचड से सना हुआ दिखे, प्रश्नकर्ता सुभ वस्तुओं जैसे की दर्पण, स्वर्ण, भ्रिन्गपत्र, पुष्पों, आदि का स्पर्श तो सुभ होता है |

सामान्य असुभ शकुन :-
सर्प, उल्लू, छिपकली, गधा, बिल्ली का नजर आना व उनकी आवाजें सुनाई देना या किसी अन्य कर्कश आवाजों का सुनाई देना, गोबर, मलमूत्र, नमक, मिर्च, राख (भस्म), कोयला, काला चना, हिंजड़े, सरसों, झंझावत, प्रकाश या तेल होते हुए भी बत्ती या दीपक का बुझ जाना, कोई बर्तन गिरना या टूटना, दरवाजे की अचानक आवाज करना, आँखों को अप्रीतिकर लगने वाली सभी वस्तुएं | किसी कार्य के प्रारम्भ से पूर्व ही छींक आना, कौओं, गधों भैंसों की आवाजें सुनाई देना प्रश्नकर्ता की बेचैनी व उटपटांग हरकतें करना, हाथ पैरों का हिलाना, प्रश्न करता ने गन्दा-मैला-फटा-लाल या छपाईदार वस्त्र पहना हो, बिल्ली का पैरों का सूंघना, बिल्ली का किसी सोये हुए व्यक्ति के ऊपर से उछल कर जाना, कुत्ते का मुह में हड्डी पकडे हुए दिखाई देना, प्रश्नकर्ता असुभ वस्तुओं जैसे की राख चाक, चाक़ू, तलवार, रस्सी, आदि का स्पर्श करे दो असुभ होता है |

विशेष प्रश्नों के समय सुभाशुभ शकुन :-

०१:- रोगी के सम्बन्धी प्रश्नों के समय :-
सुभ शकुन :-
एक जीवत प्राणी, मानव या पूर्वोक्त सुभ पशु दिखाई दे, कफादी की बीमारियों के आलावा अन्य बीमारियों में दवा लेने से बिकुल पूर्व छींक आना |
असुभ शकुन :-
डाह संस्कार में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं जैसे सफ़ेद पुष्प, दही, नए वस्त्र, पात्र का गिर के टूट जाना, सूर्यास्त के समय आकाश का अचानक लाल या अँधेरा दिखाई देना आदि |

०२:- विवाह के प्रश्नों में :-
सुभ शकुन :-
कोई व्यक्ति वस्तुओं जोड़ा लाता दिखाई दे, अचानक दो व्यक्ति (प्रश्न कर्ताओं के अतिरिक्त) आते हुए दिखाई दें, प्रश्नकर्ता सर या छाती का स्पर्श करे या अपने दोनों हाथों को संयुक्त करे, यदि प्रश्न के समय एक पुरुष दो स्त्रियों के साथ या एक स्त्री दो पुरुषों के साथ दिखे तो पुनर्विवाह होता है ।

सोमवार, 9 जनवरी 2012

श्रीरामरक्षास्तोत्र:-

श्रीगणेशाय नमः
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य ।
बुधकौशिकऋषिः ।
श्रीसीतारामचन्द्रो देवता ।
अनुष्टुप् छन्दः । सीता शक्तिः ।
श्रीमद्धनुमान् कीलकम् ।
श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे जपेविनियोगः ।
अथ ध्यानम् ।
ध्यायेदाजानबाहुं धृतशरधनुषंबद्धपद्मासनस्थम् ।
पीतं वासो वसानंनवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।
वामाङ्कारुढसीतामुखकमलमिलल्लोचनंनीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनंरामचंद्रम् ॥
इति ध्यानम् ।


चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामंराजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।
स्वलीलया जगत् त्रातुम् आविर्भूतमजंविभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठेत् प्राज्ञः पापघ्नींसर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातुविश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखंसौमित्रिवत्सलः ॥५॥
जिव्हां विद्यानिधिःपातु कण्ठंभरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधःपातु भुजौभग्नेशकार्मुकः ॥६॥
करौ सीतापतिःपातु हृदयंजामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिंजाम्बवदाश्रयः ॥७॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनीहनुमत्प्रभुः ।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥८॥
जानुनी सेतुकृत् पातु जङ्घेदशमुखान्तकः ।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलंवपुः ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृतीपठेत् ।
सचिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयीभवेत् ॥१०॥
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितंरामनामभिः ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वास्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिंमुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेणरामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था सर्वसिध्दयः ॥१३॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्॥१४॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्नेरामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुध्दोबुधकौशिकः ॥१५॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामःसकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् सनः प्रभुः ॥१६॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौचीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौरामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौसर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नौरघूत्तमौ ॥१९॥
आत्तसज्यधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथिसदैव गच्छताम् ॥२०॥
संनद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथोऽस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयोरघुत्तमः ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशःपुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः॥२३॥
इत्येतानि जपन् नित्यं मद्भक्तःश्रध्दयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति नसंशयः ॥२४॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षंपीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न तेसंसारिणो नरः ॥२५॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिंसुंदरम्
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिंविप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसन्धं दशरथतनयंश्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवंरावणारिम् ॥२६॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥२७॥
श्रीराम राम रघुनंदन राम राम
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीरामचंद्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचंद्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचंद्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
माता रामो मत्पिता रामचंद्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्रः ।
सर्वस्वं मे रामचंद्रो दयालुर्नान्यंजाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तुजनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदेरघुनंदनम् ॥३१॥
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रंरघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरुपं करुणाकरं तंश्रीरामचंद्र शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेंद्रियंबुध्दिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतंशरणं प्रपद्ये ॥३३॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयोनमाम्यहम् ॥३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्॥३६॥
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशंभजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मैनमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्यदासोऽस्महं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राममामुध्दर ॥३७॥
रामरामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनामतत्तुल्यं रामनाम वरानने॥३८॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितंश्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ।
॥ श्रीसीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

बुधवार, 4 जनवरी 2012

चश्मा उतर जाएगा :-

लगातार कम्प्यूटर पर काम करने व पढाई के अधिक बोझ के साथ ही,विटामिन व पौष्टिक खाने की कमी के कारण भी अधिकांश लोगों की आंखे कमजोर होती जा रही हैं। अक्सर देखने में आता है कि कम उम्र के लोगों को भी जल्दी ही मोटे नम्बर का चश्मा चढ़ जाता है।अगर आपको भी चश्मा लगा है तो आपका चश्मा उतर सकता है। नीचे बताए नुस्खों को चालीस दिनों तक प्रयोग में लाएं निश्चित ही चश्मा उतर जाएगा साथ थी आंखों की रोशनी भी तेज होगी।

०१- बादाम की गिरी, सौंफ बड़ी और मिश्री तीनों का पावडर बनाकर रोज एक चम्मच एक
       गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें।
०२- त्रिफला के पानी से आंखें धोने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
०३- रोज सुबह नंगे पांव हरी घास पर घूमें।
०४- पैर के तलवों में सरसों का तेल मालिश करने से आखों की रोशनी तेज होती है।
०५- सुबह उठते ही मुंह में ठण्डा पानी भरकर मुंह फुलाकर आखों में छींटे मारने से आखें
       की रोशनी बढ़ती है।

इसका उपयोग अपने दैनिक जीवन में कर सकते हैं, आप इसका लाभ स्वयं ही देख सकते है यह है "अपराजिता स्तोत्र" अपराजिता का अर्थ है जो कभी पराजित नहीं होता |
यह एक देवी है जिसे अपराजिता के नाम से जाना जाता है य......ह देवी दस महा विद्याओं में से एक है, और ये देवी जैसे की कभी खुद पराजित नहीं होती ठीक वेसे ही अपने भक्त की भी हार नहीं होने देती है तो लीजिये अपराजिता स्तोत्र :-
"अथ अपराजिता स्तोत्रं प्रारभ्यते"
श्री गणेशाय नमः
विनियोग :- ॐ अस्य श्री अपराजिता स्तोत्र महामंत्रस्य वेदव्यास ऋषि: अनुष्टुपच्छन्दः क्लीं बीजं हूँ शक्तिः सर्वाभीष्ट सिध्यर्थे जपे
विनियोगः ||
मार्कंडेय उवाच :-
शृणुध्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थ सिद्धिदाम | असिद्ध साधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम ||
ध्यानम :-
नीलोत्पल-दल-श्यामां भुजंग भरणोज्वलाम, बालेन्दु-मौलीसदृशीं नयनत्रितयान्विताम |
शंखचक्रधरां देवीं वरदां भयशालिनिं, पिनोतुंगस्तनीं साध्वीं बद्ध पद्मसनाम शिवाम |
अजितां चिन्तयेद्देवीं वैष्णविमपराजिताम ||
शुद्धस्फटिक-संकाशां चंद्रकोटी-सुशीतलाम, अभयां वर-हस्तां च श्वेतवस्त्रैः अलंकृताम |
नानाभरण- संयुक्तां जयंतीमपराजिताम, त्रिसंध्यं यः स्मरेद्देविं ततः स्तोत्रं पठेत्सुधीः |
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमोस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षाय क्षीरार्णव शायिने, शेषभोग-पर्यंकाय गरुड़-वाहनाय अमोघाय अजाय अजिताय अपराजिताय पीतवाससे | वासुदेव-संकर्षण-प्रद्ध्युम्न-अनिरुद्ध-हयशीर्ष-मत्स्यकूर्म-वराह-नृसिंह-वामन-राम-राम वर-प्रद ! नमोस्तुते | असुर दैत्य-दानव-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-किन्नर-कूष्मांड सिद्ध-योगिनी डाकिनी स्कन्दपुरोगान ग्रहान्नक्षत्र ग्रहांश्चान्यान हन-हन पच-पच मथ-मथ विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चूर्णय-चूर्णय, शंखेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुशलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा || ओं सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध जय-जय विजय-विजय अजित-अमित अपराजित अप्रतिहत सहस्रनेत्र ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल विश्वरूप बहुरूप मधुसूदन महावराहच्युत महापुरुष पुरुषोत्तम पद्मनाभ वैकुंठानिरुद्ध-नारायण गोविन्द दामोदर हृषिकेश केशव सर्वासुरोत्सादन सर्वमन्त्रप्रभंजन सर्वदेवनमस्कृत सर्वबंधनविमोचन सर्वशत्रुवशंकर सर्वाहित्प्रदमन, सर्वग्रह निवारण सर्वरोगप्रशमन सर्वपाप-विनाशन जनार्द्दन नमोस्तुते स्वाहा | या इमां अपराजितां परमवैष्णवीं पठति सिद्धां जपति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्ध्यां पठति जपति स्मरति शृणोति धारयति कीर्तयती वा न तस्याग्निवायुर्वज्रोपलाशानिभयं नववर्षणि भयं न समुद्रभयं न ग्रहभयं न चौरभयं वा भवेत् क्वाचिद्रात्रान्धकारस्त्री राज कुविषोपविष गरल वशीकरण विद्वेषोच्चाटन वन्धनभयं वा न भवेत् | एतेर्मन्त्रैः सदाहतैः सिद्धैः संसिद्ध-पूजितैः, तद्ध्यथा ओं नमस्तेस्त्वनघे अजिते अपराजिते पठति सिद्धे जपति सिद्धे जपति सिद्धे स्मरति सिद्धे महाविद्ध्ये एकादशे उमे ध्रुवे अरुन्धति सावित्री गायत्री जातवेदसे मानस्तोके सरस्वती धरणी धारणी सौदामिनी अदिति दिति गौरी गान्धारी मातंगी कृष्णे यशोदे सत्यवादिनी ब्रह्मवादिनी काली कपाली करालानेत्रे सध्योपयाचितकरि जलगत स्थलगतमंत्रिक्षगतम वा मां सर्वभूतेभ्य-सर्वोपद्र्वेभ्य स्वाहा |
यस्यां प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि |
म्रियन्ते बालका यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ||
भूर्जपत्रेत्विमां विद्यां लिखित्वा धारयेध्यदि |
एतेर्दोषेर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ||
शस्त्रं वार्यते ह्येषा समरे काण्डवारिणी |
गुल्मशूलाक्षी-रोगाणां क्षिप्रं नाशयते व्यथाम ||
शिरोरोग ज्वराणाम च नाशिनी सर्वदेहिनाम ||
तद्ध्यथा- एकाहिक- द्वयाहिक-त्र्याहिक-चातुर्थीक अर्धमासिक-द्वेमासिक-त्रैमासिक-चातुर्मासिक-पञ्च-मासिकषाण्मासिक वात्तिक पैत्तिक, श्लैष्मिक-सान्निपातिक-सततज्वर-विषमज्वराणां नाशिनी सर्वदेहिनां ओं हर हर काली सर सर गौरी धम धम विद्ये आले ताले माले गन्धे पच पच विद्ये मथ मथ विद्ये नाशय पापं हर दुःस्वप्नं विनाशाय मातः रजनी सन्ध्ये दुन्दुभि-नादे मानसवेगे शंखिनी चक्रिणी वज्रिणी शूलिनी अपमृत्युविनाशिनी विश्वेश्वरी द्राविडि द्राविडि केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिनादे मानसवेगे दुन्दुभि-दमनी शवरि किराती मातंगी ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रौं ह्रः ओं ओं श्रां श्रीं श्रुं श्रें श्रौं श्रः ॐ क्ष्वौ तुरु तुर स्वाहा |
ओं ये क्ष्मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान दम दम मर्दय मर्दय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि माहेश्वरि |
वैष्णवी वैनायकी कौमारी नारसिंही ऐन्द्री चान्द्री आग्न्येयी चामुंडे वारुणि वायव्ये रक्ष रक्ष प्रचंडविद्ध्ये ॐ इन्द्रोपेन्द्र भगिनी जये विजये शांतिपुष्टितुष्टिविवर्धिनी ||
कामांकुशे कामदुधे सर्वकामफलप्रदे सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा |
ओं आकर्षीणी आवेशनी तापिनी धरिणी धारिणी मदोन्मादिनी शोषिणी सम्मोहिनी महानीले नीलपताके महागौरी महाप्रिये महामान्द्रिका महासौरी महामायूरी आदित्यरश्मिनी जाह्नवी यमघण्टे किलि किलि चिन्तामणि सुरभि सुरोत्पन्ने सर्व-कामदुधे यथाभिलशितं कार्यं तन्मे सिध्यतु स्वाहा |
ओं भूः स्वाहा | ॐ भुवः स्वाहा | ॐ स्वः स्वः स्वाहा | ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा | ॐ यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छ्तु स्वाहा | ॐ बले बले महाबले असिद्धसाधिनी स्वाहा |
                                           || ईति श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता सम्पूर्णं ||

रविवार, 1 जनवरी 2012

परीक्षा में अच्छी सफलता के लिए जरूर करें ऐसा :-

स्टडी रूम का जीवन में काफी महत्व है। स्टडी रूम की दिशा, द्वार, उसकी सजावट आदि यदि वास्तुनुरूप हो तो छात्र मन लगाकर अध्ययन करता है। इसका सकारात्मक प्रभाव छात्र के जीवन पर भी पड़ता है। स्टडी रूम बनवाते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1- उत्तर-पूर्व व ईशान कोण सदैव ज्ञानवद्र्धक दिशाएं होती हैं। अध्ययन कक्ष ईशान कोण में बनाएं
     या पश्चिम या वायव्य कोण में भी बना सकते हैं लेकिन इनको बनाते समय इस बात का
     ध्यान रखें कि अध्ययन कक्ष का मुख या मुख्यद्वार उत्तर-पूर्व या ईशान कोण में ही हो।
2- अध्ययन कक्ष में विद्या की देवी सरस्वती और ईष्टदेव का चित्र अवश्य लगाएं। चित्रों में प्रेरक
    महापुरुषों के भी चित्र लगाना उत्तम है।
3- अध्ययन कक्ष में पुस्तकें सदैव नैऋत्य दिशा में बुक सेल्फ में रखें।
4- स्टडी टेबल के समीप या सामने दर्पण कदापि न लगाएं।
5- यदि नैऋत्य दिशा में पुस्तकें नहीं रख सकतें हैं तो दक्षिण या पश्चिम दिशा में बुक सेल्फ में
     रखें।
6- सदैव उत्तर, पूर्व या ईशान दिशा की ओर मुख करके पढऩा चाहिए।